आजकल हमारी कंपनी , जिसमें मैं काम करता हूँ, में इंक्रीमेंट (वेतन बढ़ोत्तरी) का सीजन है…आमतौर पर अधिकतर कंपनियों में ये सीजन मार्च-अप्रेल के दौरान प्रारम्भ हो जाता है…इसकी शुरुआत होती है एक विशेष रंग में रंगे फॉर्म से (फॉर्म का रंग प्रत्येक कंपनी का अपना होता है लेकिन मेरे अनुभव के अनुसार अधिकतर कंपनियों में ये रंग नीला या हरा होता है) ..इस फॉर्म को “अप्रेजल” या “ऎप्रेजल फॉर्म” कहते हैं..आपका ऎप्रेजल आपका बॉस करता है…यानि कि आपकी परफॉर्मेंस का मूल्यांकन का काम आपके बॉस के हाथ में होता है… कहने को तो इस फॉर्म को आपके बॉस को आपके साथ बैठकर भरना होता है और आपके पिछ्ले पूरे वर्ष के काम के आधार पर आपको मूल्याकिंत करना होता है जो आपके इंक्रीमेंट का आधार बनता है पर आमतौर पर इसे आपका बॉस अकेले ही भर लेता है और इसका आधार साल भर में आपके द्वारा किये गये काम नहीं वरन आपके अपने बॉस के साथ तात्कालिक रिश्ते होते हैं …यानि इंक्रीमेंट सीजन में आप अपने बॉस के कितने करीब हैं उस पर ये निर्भर करता है ..इसीलिये इस सीजन में बहुत से लोग अपने बॉस के साथ मधुर संबंध बनाने का भरसक प्रयत्न करते हैं.. जिसे आम भाषा में चमचागिरी या तेल लगाना भी कहते हैं …

हाँ तो मैं कह रहा था कि हमारी कंपनी में भी अभी ये सीजन है ….कुछ विभागों में इंक्रीमेंट हो गये हैं कुछ में होने बाकी हैं … इसी विषय पर कल एक अनाम साथी ने एक रोमन अंग्रेजी में एक मेल भेजा .. जिसमें इंक्रीमेंट के बाद एक बॉस द्वारा अपने अधीन काम करने वाले को दिया गया ज्ञान है….. आजकल ऎसा ही ज्ञान ज्ञानदत्त जी भी दिया करते हैं…इसीलिये मैने अपने हिसाब से इसे देवनागिरी में परिवर्तित कर दिया है …आप भी ये ज्ञान ले लें….और बदले में कॉमेंट्स दे दें….

Geeta Gyan

हे पार्थ !! (कर्मचारी),

इनक्रीमेंट अच्छा नहीं हुआ, बुरा हुआ…
इनसेंटिव नहीं मिला, ये भी बुरा हुआ…
वेतन में कटौती हो रही है बुरा हो रहा है, …..

तुम पिछले इनसेंटिव ना मिलने का पश्चाताप ना करो,
तुम अगले इनसेंटिव की चिंता भी मत करो,
बस अपने वेतन में संतुष्ट रहो….

तुम्हारी जेब से क्या गया,जो रोते हो?
जो आया था सब यहीं से आया था …

तुम जब नही थे, तब भी ये कंपनी चल रही थी,
तुम जब नहीं होगे, तब भी चलेगी,
तुम कुछ भी लेकर यहां नहीं आए थे..
जो अनुभव मिला यहीं मिला…
जो भी काम किया वो कंपनी के लिए किया,
डिग़्री लेकर आए थे, अनुभव लेकर जाओगे….

जो कंप्यूटर आज तुम्हारा है,
वह कल किसी और का था….
कल किसी और का होगा और परसों किसी और का होगा..
तुम इसे अपना समझ कर क्यों मगन हो ..क्यों खुश हो…
यही खुशी तुम्हारी समस्त परेशानियों का मूल कारण है…
क्यो तुम व्यर्थ चिंता करते हो, किससे व्यर्थ डरते हो,
कौन तुम्हें निकाल सकता है… ?

सतत “नियम-परिवर्तन” कंपनी का नियम है…
जिसे तुम “नियम-परिवर्तन” कहते हो, वही तो चाल है…
एक पल में तुम बैस्ट परफॉर्मर और हीरो नम्बर वन या सुपर स्टार हो,
दूसरे पल में तुम वर्स्ट परफॉर्मर बन जाते हो ओर टारगेट अचीव नहीं कर पाते हो..

ऎप्रेजल,इनसेंटिव ये सब अपने मन से हटा दो,
अपने विचार से मिटा दो,
फिर कंपनी तुम्हारी है और तुम कंपनी के…..
ना ये इन्क्रीमेंट वगैरह तुम्हारे लिए हैं
ना तुम इसके लिये हो,

परंतु तुम्हारा जॉब सुरक्षित है
फिर तुम परेशान क्यों होते हो……..?
तुम अपने आप को कंपनी को अर्पित कर दो,
मत करो इनक्रीमेंट की चिंता…बस मन लगाकर अपना कर्म किये जाओ…
यही सबसे बड़ा गोल्डन रूल है
जो इस गोल्डन रूल को जानता है..वो ही सुखी है…..
वोह इन रिव्यू, इनसेंटिव ,ऎप्रेजल,रिटायरमेंट आदि के बंधन से सदा के लिए मुक्त हो जाता है….
तो तुम भी मुक्त होने का प्रयास करो और खुश रहो…..

तुम्हारा बॉस कृष्ण …

ये सुनकर तो हम तो शांत हो गये…आपका क्या विचार है……