शुरुआती झटके



कल जब अपना चिट्ठा लिख रहा था तब ना तो मन में ये था- जैसा कि हमारे अग्रज (?) ने कहा “वैसे, विवादों से शुरुआत करना अपनी तरफ ध्यान आकर्षित कराने का पुराना फंडा रहा है।“ –कि मैं किसी का ध्यान अपनी और आकर्षित करूं और ना ही ये कि मैं “पिल्लम पिल्ली” कर कोई विवाद को जन्म दूं ..और “पिल्लम पिल्ली” करना मेरी हौबी भी नहीं है ..और “तू कौन खांमखा ?” कोई कहे तो “क्या जबाब दें ?”..हम तो कोई भी नहीं श्रीमान…और फिर केवल चिट्ठा लिख ले लेने से कोई कुछ हो भी नहीं जाता भाया..तो हम तो कोई भी नहीं ..

अब तो लग रहा है कि या तो अपन को भी “ब्लोग की राजनीति “ समझनी पड़ेगी या फिर जल में रह कर “मगर” से बैर करना पड़ेगा (वैसे आपने crocodile tears के बारे में तो सुना ही होगा ना). मेरा सोचना था (!) कि मैं भी चर्चा में चल रहे चिट्ठों पर अपने विचार व्यक्त करता रहूं किंतु बहुत सी विपरीत टिप्पणीयों से अब उसकी हिम्मत नहीं रही .इसलिये नहीं मैं घबरा कर भाग रहा हूं बल्कि इसलिये कि मैं फालतू के वाद-विवाद में अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करना चाहता..ज़ब लोग “वाद-विवाद” को सिर्फ “विवाद” की दृष्टि से ही देखें तो फिर तर्क युक्त बातें भी बेमानी हो जाती हैं ..मैं सेठ जी से सहमत होते हुए यह कह सकता था कि मैं आपके लिये नहीं लिखता पर “सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं” इसलिये मैं अब “शुरुआती झटकों” को बन्द करता हूं..और अब आइन्दा सिर्फ और सिर्फ अपनी ही बात करुंगा.. कोई “वाद” ना होगा तो “विवाद” भी ना होगा…

अब हर चिट्ठा आपको अच्छा ही लगे ये जरुरी तो नही जैसे डा. प्रभात ने कम्पयूटर को जल्दी खोलने और जल्दी बन्द करने का उपाय बताया अब चुंकि मैं आई.टी. से जुड़ा हूं मेरे लिये ये बचकानी सी बात है पर मैं इस पोस्ट के पीछे मनतव्य को समझता हूं इसलिये इसे अच्छा ही मानता हूं..

एक दोहा आज दिन भर बहुत याद आया …. ना जाने क्यों..??

बड़ा हुआ तो क्या हुआ , जैसे पेड़ खजूर
पंछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर

सभी गुणी जनों को मेरा प्रणाम ..

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जुम्मा जुम्मा दो ही दिन तो हुए थे हमें (मुझे) हिन्दी में चिट्ठा शुरु किये कि मसिजीवी का ये चिट्ठा पढ़ा. (जबसे इंटरनैट पर चिट्ठा पना प्रारम्भ किया काफ़ी लोगो को खुद कोहमपुकारते देखा.तब समझ में नहीं आया कि मैं खुद को क्या पुकारूंमैंयाहम”. फ़िर सोचा कि हिन्दी व्याकरण के अनुसार तोमैंही होना चाहये.) . पहले सोचा था कि कल ही एक नया चिट्ठा लिख डालूं फ़िर सोचा कि चलो एक बार पहले के कुछ hindi blogs पढ़े जायें .

इंटरनैट पर हिन्दी की चिट्ठाकारी को कुछ ही दिन हुए हैं पर इतने ही दिनों में इतने सारे वाद विवाद हो गये कि लगता है हम लोग बहुत जल्दी में हैं. वाद विवाद भी किसलिये .. क्योंकि हम चाहते हैं कि हिन्दी का इंटरनैट पर भी बोल बाला हो.. पर यहां हम य़ह भूल जाते हैं कि इंटरनैट भी एक माध्यम ही है बस ..इसमें बाकी वही चीजें रहनी हैं जो कि सामान्यतः हिन्दी लेखन में हैं .. वैसे तो कई सारी चीजे अच्छी बुरी लगीं दो प्रमुख चीजों ने बहुत उद्वेलित किया 1. आचार संहिता बनाने का प्रयास 2. मुखोटों की मारामारी

कल ही एक लेख आया जिसमें आचार संहिता को मजाकिया लहजे में दिखाने का प्रयास किया .लेकिन ये तो मजाक था यदि इसे गम्भीरता से सोचें तो ये कोई मजाक नही है ..हिन्दी  चिट्ठाकारी को हम क्यों पत्रकारिता की श्रेणी में रखते हैं ..यह भी तो हिन्दी लेखन ही है सिर्फ माध्यम अलग है …तो जब उसमें कोइ आचार संहिता नहीं तो यहाँ हम ऎसी बातें क्यों करें…हिन्दी लेखन में ऎसे बहुत उदाहरण मिल जायेंगे जहाँ वो सभी शब्द प्रयोग किये गये हैं जिन्हे हम यहाँ अछूत मान रहे हैं ..क्या आपने “  राही मासूम रज़ा” का “ आधा गाँव “ नही पढ़ा… और फिर किसे यह हक है कि वो आचार संहिता बनाये ?.. इंटरनैट एक खुला माध्यम (open platform) है ..इसे खुला ही रहने दें इसकी सुन्दरता  व भलाई भी इसी में है… यहां मैं इस चीज की वकालत नही कर रहा कि चिट्ठों में “अछूत भाषा “ का प्रयोग हो बल्कि यह कि इसके निर्धारण का अधिकार लेखक के वजाय पाठक को हो… वैसे भी इंटरनैट हमें मुक्त करता है फिर हम इसे क्यों सीमाओं में बाँधने का प्रयास करें.. कमप्यूटर की दुनियां में आज एक बहुत बड़ा तबका स्वतंत्रता के अधिकार की बात करते हुए (open source software) माइक्रोसोफ्ट जैसी बड़ी कंपनी से लोहा लेता है वहीं हम इसे…..खैर अभी इतना ही. बाकी अगली पोस्ट में..

एक शिकायत.. “चिट्ठा चर्चा” में दीप्ती पंत के नये चिट्ठे का जिक्र हुआ मेरे चिट्ठे का नहीं… क्या चर्चा के लिये “स्त्रीलिंग” होना आवश्यक है..यदि ऎसा है तो मैं भी फिर जे. ऎल. सोनार की तर्ज पर नया मुखोटा लगाऊं..:-)


बहुत दिनों से सोच रह था कि मैं भी Blogging (चिठ्ठाकारी) प्रारम्भ करूं पर एक तो हिन्दी लिख्नने का सह्ज साधन उप्लब्ध नहीं था दूसरा ये भी भय था कि कही हिन्दी चिठ्ठाकारी के धुरुन्धर (लिंक दिया जा सकता था पर दे नही पाया…आप सुझायें.. ) इसे अन्यथा ना ले लैं. पहली समस्या को सुलझाया Indic IME को क्म्प्यूटर में स्थापित कर .अब मैं Microsoft word (2007) में टाइप तो कर पाता हूं पर गति अभी भी बहुत कम है .विशेषकर ‘आ’ की मात्रा लगाना भूल जाता हूं और फिर पीछे जाने पर मात्रा लगाना कठिन हो जाता है क्योंकि अब वो मात्रा नहीं पूरा ‘आ’ बन जाता है .आशा है ‘धुरुन्धर’  सहायता करेंगे.

फिर अमित जी का ब्लोग पढ़ा तो लगा कि दिल्ली में तो हम भी थे तो 6 घंटे चली वार्ता का हिस्सा तो हो ही सकते थे . फिर खुद को टटोला तो लगा कि हमने तो अभी चिठ्ठाकारी प्रारम्भ भी नहीं की फिर केसे इस शिखर वार्ता का हिस्सा बनते . तो प्रेरणा मिली कि चलो कुछ लिखा जाय . बेसे नारद और अक्षरग्राम पर अपना आना जाना लगा रहता है ..पिछ्ले 2-3 महीनों से हिन्दी की लगभग सारी पोस्ट पढ़ रहा हूं..
पहले सोचा करता था कि ब्लोगिंग वही लोग करते होंगे जो या तो पत्रकार है , या फिर सरकारी कर्मचारी जिनके पास समय बहुत रह्ता है ..हालाकि ये बात काफी हद तक सच भी है पर पूर्णतः नहीं ..

चलो अभी बहुत हो गयी बकबक ..बांकी फिर ..अभी तो हिन्दी लिख्नना ही सीख रहा हूं..