दरअसल ब्लॉग की शुरुआत एक दैनिन्दिनी या डायरी के रूप में ही हुई थी. लोगो ने इसे अपनी डायरी का ही एक हिस्सा माना. ऎसी डायरी जो सार्वजनिक थी.इसी कारण अधिकतर लोगों ने छ्द्म नामों से लिखना प्रारम्भ किया.लेकिन आज ब्लॉग का स्वरूप बदल रहा है. लोग इसे वैकल्पिक पत्रकारिता या साहित्य लेखन से जोड़ने लगे है.इस चिट्ठे पर अब कुछ व्यक्तिगत से मुद्दों पर लिखने का विचार है.कम से कम सप्ताह में एक बार. हाँलाकि अब मैं नये चिट्ठे पर लिखने लगा हूँ. लेकिन वहाँ पर कोशिश है कि कुछ साहित्यिक टाइप (?) का लेखन करूँ.
किताबों से मुझे सदा से ही बहुत प्यार रहा है.बचपन से ही किताबें पढने का शौक रहा है. तब पढ़ने का समय होता था पर तब पैसे नहीं होते थे कि किताब खरीद सकें. अब पैसे हैं तो किताब पढ़ने का समय सिमटता जा रहा है. उन दिनों पुस्तकालय में जाके किताबें पढ़ता था. पर इस तरह पढ़ने से एक ही नुकसान होता है कि जब आप समय के साथ पढ़े हुए को भूलने लगते हैं और आपको फिर से उसी किताब को पढ़ने की इच्छा होती है तो आप कुछ नहीं कर पाते.कभी किसी किताब में पढ़े हुए को सन्दर्भ के रूप में प्रयोग करना हो भी आप मुश्किल में पढ़ जाते हैं. पिछ्ले दिनों प्रगति मैदान में एक छोटा सा पुस्तक मेला लगा था. मैं भी गया और कई किताबें खरीद डाली. उनकी चर्चा अपने मुख्य ब्लॉग पर कभी करुंगा.
हिन्दी ब्लॉग लेखन से कम से कम मुझे एक लाभ हुआ है कि हिन्दी किताबों में रुचि फिर से बढ़ने लगी है. जब से प्राइवेट सैक्टर में नौकरी प्रारम्भ की तब से अधिकतर काम अंग्रेजी में ही होता है इसलिये अंग्रेजी ज्यादा रास आने लगी थी…और फिर अंग्रेजी किताबें पढ़ने का सिलसिला भी चालू हुआ. हिन्दी किताबें छूटती ही जा रहीं थी.हाँलाकि रस्म अदायगी के तौर पर हिन्दी किताबें कम से कम साल में एक बार खरीदता रहा लेकिन सब किताबें पढ़ी जायें ये संभव नहीं हो पाया. अब ब्लॉग लेखन के बाद हिन्दी की किताबों में दिलचस्पी फिर से बढ़ी है.इसीलिये कुछ नयी किताबें खरीद रहा हूँ कुछ पुरानी पढ़ रहा हूँ. राजकमल की ‘पुस्तक मित्र योजना’ का भी सदस्य बन गया हूँ.
कुछ पत्रिकाऎं भी नियमित रूप से मँगा रहा हूँ. ‘कथादेश’ अविनाश जी के लेख के लिये नियमित पढ़्ता हूँ. ‘आलोचना’ और ‘वाक’ भी मंगा रखी हैं. ‘लफ्ज’ का भी ग्राहक बन रहा हूँ. कल भी श्री राम सैंटर से कुछ किताबें खरीद लाया. कितनी पढ़ी जायेंगी मालूम नहीं..
ये सब क्यों कर रहा हूँ या क्यो हो रहा है पता नहीं…पर जो भी है…मैं मानता हूँ कि अच्छा ही है…
थैक्यू ब्लॉगिंग.
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अभी हाल ही में जो लिखा दूसरे चिट्ठे पर. उमर खैयाम की रुबाइयों पर एक विशेष श्रंखला प्रारम्भ की है.
2. उमर खैयाम की रुबाइयों के अनुवाद..
3. मधुशाला में विराम..टिप्पणी चर्चा के लिये
4. उमर की रुबाइयों के अनुवाद भारतीय भाषाओं में
कुछ व्यंग्य जो पिछ्ले दिनों लिखे.
1. एक व्यंग्य पुस्तक का विमोचन
2. एक ग्रेट फादर का बर्थडे…[ यह बहुत पसंद किया गया.न पढ़ा हो तो कृपया पढ़ लें]
4. एस.एम.एस.प्यार ( SMS Love) [ यह भी हिट रहा]
बहस / मेरे विचार
2. क्या चिट्ठाकार बढ़ने से फायदा हुआ है?
सूचना टाइप
1. ऑटो/टैक्सी के लिये मोलभाव गलत है ? !
अक्टूबर 7, 2007 at 2:28 पूर्वाह्न
आपका भी आभार
अक्टूबर 7, 2007 at 2:40 पूर्वाह्न
बढ़िया, खूब पढ़ते रहिए। और ब्लाग पर जो मन आये, सो लिखिये, मतलब यह नहीं कि जो मन वह लिख दीजिये। मतलब यह कि जो मन आये वह लिखिये।
अक्टूबर 7, 2007 at 5:49 पूर्वाह्न
काकेश जी,
बढ़िया. बहुत बढ़िया. ब्लॉग को साहित्य लेखन के साथ जोड़ना, बदलते समय का हिस्सा है. इसको शायद ब्लॉग का भारतीयकरण कहा जा सकता है.
अक्टूबर 7, 2007 at 6:05 पूर्वाह्न
अजी ब्लॉग है ही बेफिक्र होकर लिखने की चीज। ज्यादा सोचकर तो किताब लिखी जाती है। इसलिए टैंशन मत लीजिए और मौज से जो मन में आए लिखते जाइए, झेलने के लिए हम हैं ही। 🙂