पिछ्ली पोस्ट में आपको समकाल में छपे लेख के बारे में बताया था. बहुत से लोगों ने उसे पढ़ा या पढ़ने की कोशिश की. लेकिन शिकायत यह रही कि रिजोल्यूशन ठीक ना होने के कारण बहुत से लोग पढ़ नहीं पाये. इधर इस लेख के मूल लेखक संजय तिवारी जी ने मुझसे संपर्क किया और उन्होने इस लेख को मेरे को भेज दिया. तो प्रस्तुत है ये लेख आप सभी के लिये.इसके लिये संजय जी धन्यवाद के पात्र है. आशा है अब सब लोग पढ़ पायेंगे. एक भूल सुधार …यह पत्रिका दिल्ली से ही निकलती है.
ब्लाग की दुनिया
सोमवार 21 अप्रैल 2003. समय रात के 10 बजकर 21 मिनट . इसी दिन और इसी समय सूचना संचार जगत में हिन्दी का पहला ब्लाग कम्प्यूटर पर अवतरित हुआ था. इसका नाम था 9.2.11 डॉट ब्लागस्पाट डॉट काम . इसे बनानेवाले आलोक कुमार ने पहली बार पोस्टिंग करते हुए लिखा है- “चलिए अब ब्लाग बना लिया तो कुछ लिखा जाए. वैसे ब्लाग की हिन्दी क्या होगी , पता नहीं.” इन शब्दों से शुरू हुआ हिन्दी ब्लागिंग का सफर चार साल बाद कई बाधाएं पार करते हुए लगातार आगे बढ़ रहा है. देश -विदेश में ऐसे 700 ब्लागर हैं जो हिन्दी में काम कर रहे हैं. कहानी-कविता और धर्म आध्यात्म से लेकर निवेश सलाह तक सबकुछ धीरे -धीरे हिन्दी ब्लागिंग के दायरे में आता जा रहा है. भाषा की सबसे बड़ी समस्या अभी भी पूरी तरह से हल नहीं हो सकी है लेकिन माइक्रोसाफ्ट और सर्च इंजन गूगल के अपने स्तर पर किये जा रहे प्रयासों का परिणाम है कि आज इंटरनेट पर हिन्दी में काम करना मुश्किल नहीं है . हिन्दी का पहला ब्लाग बनाने वाले आलोक कुमार अब भाषा विकास के काम में लग गये हैं और अब एक पूरी जमात खड़ी हो गयी है जो अपने-अपने स्तर से ब्लागिंग की दुनिया में हिन्दी को स्थापित कर रहे हैं . लेकिन सवाल यह है कि क्या ब्लाग उस रास्ते पर है जिसपर उसे होना चाहिए ?
यह बात सही है कि अब ब्लाग हिन्दी के स्पर्श से चिट्ठा बन गया है. और हिन्दी में ब्लाग लिखनेवाले चिट्ठाकार के नाम से सुशोभित किये जाते हैं. लेकिन चिट्ठाकारिता की इस नयी शब्दावली ने अभी तक वह कमाल नहीं किया है जिसकी उम्मीद उससे की जा सकती है. हिन्दी फान्ट के आविष्कारकों में से एक मैथिली गुप्त दिल्ली में रहते हैं और फिलहाल वे हिन्दी ब्लागरों की संख्या बढ़ाने के अभियान पर काम कर रहे हैं . उनका कहना है कि “एक लिहाज से यह दुनिया अभी बहुत छोटी है. औसत 100 नयी रचनाएं प्रतिदिन हिन्दी में कम्प्यूटर पर उभरते हैं . और लगभग 300 लोग ही हैं जिन्हें हम सक्रिय चिट्ठाकार कह सकते हैं. इस लिहाज से अभी तुरंत आवश्यकता यह है कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस माध्यम को जानें और इसका उपयोग करें .” नये चिट्ठाकारों के सामने सबसे बड़ी समस्या आज भी तकनीकि की है. हालांकि वीकिपीडिया, केफे हिन्दी , ई-पंडित, जैसी कुछ साईट हैं जहां हिन्दी में काम करने के लिए आवश्यक जानकारी और सहयोग मिल जाता है फिर भी तकनीकि की जटिलता , हिन्दी की-बोर्ड और शब्दावली का नयापन नये हिन्दी ब्लागरों की राह में सबसे बड़ी बाधा है.
इंटरनेट की दुनिया में ब्लाग की शुरूआत हुई अगस्त 1999 में जब सैन फ्रांसिस्को में पीरा लैब्स के तीन दोस्तों ने इस नयी विधा का परीक्षण शुरू किया जो लेखक को पाठक से जोड़ता था . यानी लिखे हुए को आप अपनी सहमति-असहमति से अवगत करा सकते थे. अपना स्वतंत्र पृष्ठ बना सकते थे और वेब बनाने की झंझटो में पड़े बिना आप अपना इंटरनेट का पन्ना संचालित कर सकते थे . थोड़े दिनों तक यह कंपनी अपने सीमित संसाधनों से लोगों को इंटररेक्टिव वेब की सुविधा मुहैया कराती रही और इसका दायरा अमरीका के बाहर नहीं था. लेकिन 2002 में अचानक ही इस विधि को नया आयाम मिल गया. इंटरनेट जगत के जाने पहचाने नाम गूगल ने ब्लागर कंपनी को खरीदने का प्रस्ताव कर दिया. भला इन तीनों को क्या ऐतराज हो सकता था . इसके बाद ब्लागर गूगल का एक हिस्सा हो गया और दुनियाभर में इसकी सेवाओं के साथ जोड़ दिया गया. ब्लागर आज दुनिया की 36 भाषाओं में लिखने-पढ़ने की सुविधा देता है. इसके लिए गूगल में एक अलग विभाग बना दिया गया है जो इन सेवाओं को नियमित अपडेट रखता है .
ब्लागर के अलावा वर्डप्रेस डॉट काम दूसरी ऐसी बड़ी सर्विस प्रोवाईडर है जो हिन्दी में ब्लाग बनाने की सुविधा प्रदान करता है. वर्डप्रेस डाटकॉम नये आगन्तुक को 50 एमबी की जगह मुहैया कराता है और अगर आपको इससे अधिक जगह की जरूरत है तो आप वर्डप्रेस से सस्ते में खरीद सकते हैं. वैसे भारत में सुलेखा डॉट काम भी ब्लाग की सुविधा मुहैया कराता है लेकिन वह हिन्दी के लिहाज से उपयुक्त स्थान नहीं है . अंग्रेजी ब्लागरों के लिए सुलेखा उत्तम स्थान है. कई सारी डॉट-काम कंपनियां अपनी साईट पर ब्लाग की सुविधा दे रही हैं जहां आप मुफ्त में अपना वेब पेज बना सकते हैं वैसे ही जैसे आप अपना ई -मेल एकाउण्ट बनाते और चलाते हैं. खुद माइक्रोसाफ्ट कारपोरेशन ने माई-स्पेसेश के नाम से अपनी वेबसाईट पर ब्लाग की सुविधा दी है जो हाटमेल के ई -मेल अकाउण्ट से चालू किया जा सकता है. लेकिन दो समस्याएं हैं. पहली भाषा और की बोर्ड की और दूसरी पाठकों की .
इस समस्या का समाधान भी कुछ हिन्दी प्रेमियों ने ही खोज निकाला. कुवैत में निजी व्यवसाय करनेवाले जीतेन्द्र चौधरी और उनके कुछ भारतीय मित्रों ने मिलकर एक ऐसी वेबसाईट की कल्पना की जो हिन्दी में लिखे जा रहे चिट्ठों को एक जगह पर प्रदर्शित करे . इस वेबसाईट का नाम रखा गया- नारद. इंटरनेट की शब्दावली में इस तरह की वेबसाईट को फीड-एग्रीगेटर कहा जाता है जिसका मतलब है कि अगर आप नारद के सदस्य हैं तो आप अपने चिट्ठे पर जो कुछ लिखते हैं थोड़ी ही देर में वह उस साईट पर दिखने लगता है. उस एग्रीगेटर पर एक लिंक होता है जिसपर क्लिक करने से आप सीधे उस ब्लाग पर पहुंच जाते हैं जिसका लिंक नारद पर आपने देखा था . इस विधि ने चिट्ठाकारों को बहुत मदद की क्योंकि अब किसी नये पाठक को एक वेबसाईट का पता बताते हैं और वह चिट्ठासंसार का चक्कर लगा आता है. नारद की तरह कई और उन्नत फीड एग्रीगेटर अब वेबसाईट पर उपलब्ध हैं . मसलन हिन्दीं में पहला चिट्ठा लिखनेवाले आलोक कुमार ने अपने दो मित्रों के साथ मिलकर एक नये फीड एग्रीगेटर की शुरूआत की है जिसका नाम है – चिट्ठाजगत . इसके अलावा अलग-अलग प्रकार के ब्लाग्स के लिए हिन्दी ब्लाग्स डॉट काम है जो प्रतीक पाण्डेय चलाते हैं. अमेरिका में रहनेवाले देवाशीष हिन्दी ब्लाग्स डॉट आर्ग के कर्ता -धर्ता हैं. एक और फीड-एग्रीगेटर ब्लागवाणी आने की तैयारी में है जिसके विकास में मैथिली गुप्त लगे हुए हैं .
वैसे इंटरेक्टिव वेबसाईट आज सहज-सुलभ है. इसके पीछे काम करनेवाली तकनीकि कोई दुर्लभ चीज नहीं है. डाटकाम कंपनियों के लिए भी यह तकनीकि काम की है क्योंकि इससे पाठकों का सीधा रिश्ता सर्विस आपरेटर के साथ जुड़ता है . कई ऐसी सोशल नेटवर्किंग साईट धड़ल्ले से चल रही हैं जो आपको इंटरनेट पर आपको एक प्लेटफार्म देती हैं. रूपर्ट मर्डोक की माई स्पेश 16 अरब डॉलर बाजार मूल्य की कंपनी बन गयी है क्योंकि इससे 8 करोड़ लोग जुड़े हुए हैं. गूगल की सोशल नेवर्किंग साईट आर्कुट भी खासी चर्चा में रहता है . लेकिन अभी यहां भाषा बड़ी बाधा है. जहां हिन्दीवालों की जमात से आपकी मुलाकात हो सकती है वह ब्लागर और वर्डप्रेस ही हैं. मतलब साफ है कि हिन्दी में ब्लाग की यह नयी दुनिया तेजी से लोगों को आकर्षित कर रही है . रोज नये-नये ब्लाग अस्तित्व में आ रहे हैं. और जैसा हर काम के शुरूआत में होता है यहां भी कुछ लोग हिन्दी साहित्यवाली राजनीति , विचारधारा की गाली-गलौज आदि करते रहते हैं. हिन्दी के एक ब्लागर अरुण कहते हैं ” यह अभी शैशवकाल है. धीरे-धीरे इसमें बदलाव आयेगा.” मैथिली गुप्त भी अनुमान लगाते हैं कि “जैसे ही यह संख्या तीन-चार हजार पार करेगी तो उससे एक प्रतिस्पर्धा का निर्माण हो जाएगा. इसके बाद ब्लागजगत में सुधार अपने -आप दिखने लगेंगे.”
बड़ा सवाल यह है कि क्या ब्लाग वैकल्पिक मीडिया बन सकता है? जवाब है हां. यहां आप अपने काम को लेकर स्वतंत्र हैं . और इसके लिए आपको कुछ भी पूंजी-निवेश नहीं चाहिए. थोड़ा सा तकनीकि ज्ञान और मन में लिखने-पढ़ने की लगन . जब यह दौर शुरू होगा, सही मायने में इसके बाद ही हिन्दी ब्लाग जगत का असली लाभ लोगों को मिलेगा. फिलहाल तो यह प्रयोगों के दौर में है , जैसे-जैसे इंटरनेट का विस्तार होगा, और नये लोग जुड़ते जाएंगे, इस विधा में निखार आयेगा .
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कैसे बनाएं अपना हिन्दी ब्लाग
सबसे पहले अगर आपके पास जी-मेल का एकाउण्ट है तो आप सीधे ब्लागर से जुड़ सकते हैं. आपको ब्लागर का एक रजिस्ट्रेशन करना होता है जहां आपका ई -मेल ही आपकी कुंजी है.
अगर आपके पास जी-मेल नहीं है तो आप वर्ड-प्रेस पर हिन्दी में अपना ब्लाग बना सकते हैं.
अब आपको अपने कम्प्यूटर पर विन्डोज एक्सपी में रीजनल लैग्वैंज और सेटिंग्स में हिन्दी को शुरू करना चाहिए जिसके बाद आप इंटरनेट पर हिन्दी में काम कर सकते हैं.
ध्यान रहे आपको नये तरह के की-बोर्ड पर काम करना होगा जिसे फ्योनिटिक की-बोर्ड कहते हैं. इसका आविष्कार भारत सरकार की सी -डैक नामक कंपनी ने किया है और हिन्दी लिखने के लिए यही की-बोर्ड पूरी दुनिया में प्रयुक्त हो रहा है क्योंकि माइक्रोसाफ्ट ने भी यही की -बोर्ड स्वीकार किया है.
अगर आपके पास अपना कम्प्यूटर नहीं है और ब्लाग लिखना चाहते हैं तो आप ब्लागर के साथ जुड़िये. यह आपको रोमन लिपी में लिखने की सुविधा देता है और अपनेआप उसे हिन्दी में बदल देता है .
किसी भी तरह की मदद के लिए हिन्दी वीकिपीडिया, अक्षरग्राम, ई-पंडित, देवनागरी, हिन्दी कैफे आदि के वेबपेजों का अवलोकन किया जा सकता है.
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संजय तिवारी
www.visfot.com
संजय जी को पुन: धन्यवाद.
जुलाई 24, 2007 at 8:27 पूर्वाह्न
संजय जी को धन्यवाद जी हमारी और से भी
जुलाई 24, 2007 at 8:58 पूर्वाह्न
वाह, शिकायत दूर हो गई जी अपनी!!
आभार!
बढ़िया लेख, संजय जी को साधुवाद इस जानकारी के साथ कि ऑर्कुट पर भी हिन्दी मौजूद है और धड़ल्ले से मौजूद है, हिन्दी वहां समस्या नही है कोई!!
जुलाई 24, 2007 at 9:10 पूर्वाह्न
अच्छा लेख. धन्यवाद.
जुलाई 24, 2007 at 10:07 पूर्वाह्न
बहुत बढ़िया. आभार.
जुलाई 24, 2007 at 10:39 पूर्वाह्न
[…] वो इसे नहीं पढ़ पा रहे हैं इसलिये यह लेख यहां पर डाल दिया गया […]
जुलाई 24, 2007 at 12:08 अपराह्न
बढि़या है। जीतेंन्द्र और देबाशीष के बारे में जानकारी में थोड़ा सुधार मांगती है यह पोस्ट! बकिया चकाचक!
जुलाई 24, 2007 at 1:08 अपराह्न
वाह-वाह संजय जी को बधाई, बहुत ही सुन्दर और रुचिकर लेख। उनसे आग्रह है कि आगे भी हिन्दी चिट्ठाकारी बारे ऎसे ही जागरुकता फैलाते रहें।
इस लेख को यूनिकोड में उपलब्ध करवाने के लिए संजय जी और आपका धन्यवाद।
लेख में कुछ गलतियाँ थी, सुधार हेतु दे रहा हूँ। आशा है संजय भाई अन्यथा नहीं लेंगे।
Pyra Labs ने पहला ब्लॉग नहीं बनाया था, 1999 से बहुत पहले से ब्लॉगिंग की शुरुआत हो चुकी थी। Pyra Labs ने ‘ब्लॉगस्पॉट’ की शुरुआत की थी जो कि एक ब्लॉगिंग सेवा है, यह बाद में गूगल द्वारा खरीद ली गई जिसने इसका बाद में ‘ब्लॉगर’ नामकरण किया।
देबु दा पुणे में रहते हैं, आजकल अस्थाई तौर पर अमरीका मे हैं।
हिन्दी ब्लॉग्स डॉट आर्ग फीड एग्रीगेटर नहीं बल्कि एक ब्लॉग डायरैक्ट्री है।
ऑर्कुट में हिन्दी मस्त चलती है जी, हिन्दी वालों के बहुत से अड्डे हैं वहाँ।
सी-डैक ने फोनेटिक नहीं बल्कि इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड बनाया है जो कि भारत सरकार द्वारा मानकीकृत है और माइक्रोसॉफ्ट विंडोज सहित लिनक्स तथा मैकिनटोश ऑपरेटिंग सिस्टमों में इनबिल्ट आता है।
यद्यपि नैट पर ट्रांसलिट्रेशन आधारित फोनेटिक कीबोर्ड सर्वाधिक प्रचलित हैं।
जुलाई 25, 2007 at 1:05 पूर्वाह्न
श्रीश जी; क्या आप बता सकते हैं कि फोनेटिक टायपिंग की शुरूआत कैसे और किसने की? पहला फोनेटिक पर आधारित टायपिंग साफ्टवेयर कौन सा है?
जुलाई 25, 2007 at 6:58 पूर्वाह्न
मेरे विचार में सबसे पहला हिन्दी फ़ोनेटिक टाइपिंग सॉफ्टवेयर शुषा फ़ॉन्ट था जिसे रेलवे के किसी अधिकारी ने बनाया था नाम जुबान पर है पर अटक गया है. मुफ़्त और मुक्त स्रोत में होने के कारण वह बहुत ही लोकप्रिय हुआ. पर उसे पूरा फ़ोनेटिक भी नहीं मान सकते.
जुलाई 26, 2007 at 5:29 अपराह्न
मेरी जानकारी अनुसार यह गलत है। सबसे पहले ब्लॉगरों में जस्टिन हॉल का नाम उपर है जिन्होंने 1994 से ब्लॉगिंग आरम्भ की, लेकिन उस समय वह केवल एक static वेबपेज होता था जिसको बार-२ अपडेट किया जाता था और पाठक से लगभग कोई संपर्क नहीं होता था।
पायरा लैब्स के ब्लॉगर.कॉम आने से पहले ज़ांगा(Xanga) नाम की सर्विस आ चुकी थी जहाँ लोग अपनी ऑनलाईन डायर्रियाँ(ब्लॉग) बना सकते थे और ब्लॉगर.कॉम के लांच होने से कुछ माह पहले लांच हुई थी लाईवजर्नल(LiveJournal) नामक सर्विस।
संजय जी को थोड़ी शोध और करनी चाहिए थी इस लेख को लिखने से पहले, यह सब आसानी से मिल जाने वाली जानकारी है। 🙂
अगस्त 9, 2007 at 6:46 पूर्वाह्न
बहुत अच्छी जानकारी लेख के माध्यम तथा श्रीश जी एवं अमित जी की टिप्पणिय्पं के माध्यम से मिली. सबका आभार.काकेश जी आपका भी ,कि यहां तक ज्ञान में वृद्धि हुई.
जुलाई 22, 2009 at 2:28 पूर्वाह्न
[…] मे चिट्ठाकारों पर लिखी स्टोरी को काकेश ने जब अपने ब्लाग पर प्रकाशित कर दिया […]