जूतमबाजी जारी है..कोई सिले जूते की भाषा सुनते सुनते इतना पक गया है कि कहता है जूते की सुनो वो तुम्हारी सुनेगा कोई फटे जूते की व्यथा कथा कहते नहीं थक रहा. . लेकिन मजे की बात यह है कि ये तो कोई बता ही नहीं रहा जूते का इतिहास ,भूगोल ( आप चाहें तो और विषय भी जोड़ लें ) क्या है ? आज के युग में जूतमबाजी का क्या महत्व है ?… .जूता बिरादरी के अन्य सदस्य मसलन जूते की प्रेमिका सैंडल रानी , छोटी बहिन चप्पल और भी अन्य सदस्य जैसे जूती , बूट इत्यादि नाराज हैं कि ये भेदभाव क्यों ..अब कल ही सैंडल रानियों से पाला पड़ गया ..कैसे पड़ा ये तो बाद में बताऊंगा लेकिन उन्होने भी कल मेरे सर में अपनी छाप छोड़ने के बाद ढेर सारा उपदेश दे डाला और सर का तबला कुछ ज्यादा ही देर तक बजाया ..मेरे विरोध करने पर कहने लगी कि तुम चिट्ठाकार केवल जूते की ही बात क्यों करते हो मैं इतनी सुंदर , सुशील ,स्लिम एंड ट्रिम हूं मेरे बारे में क्यों नही लिखते .हम गिड़गिड़ाकर बोले अरे अपन तो अभी इस ‘लाईन’ में नये नये आये हैं बहनजी ..आप शायद नही जानती कि जूतमबाजी के दंगल में उतरे दोनों खिलाड़ी धुरंधर खिलाड़ी हैं ..एक फुरसत से लिख्नने वाले इंसान हैं (उनके पास बहुत फुरसत है) दूसरे इंडी-ब्लौग पुरस्कार प्राप्त … बात को काटकर फिर से सर में बजते हुए वो बोलीं कि फिर क्यों नारा लगाये फिरते हो कि “हम भी हैं लाईन में”....जब लाईन में हो तो लिखो हम पर ..और हाँ… हमारी हिस्ट्री पर भी लिखियो .. उन से ये वादा कर कि जरूर एक चिट्ठा लिखेंगे हम किसी तरह जान बचाकर भागे…तो पेश है ये चिट्ठा..
पर पहले ये तो बता दें कि कैसे हम सैंडल रानी के चुंगुल में फंस गये..
जब हमने चिट्ठाकारिता शुरू की तो कुछ ‘शुरुआती झटके’ लगे …. हुआ यूं कि हम इतने बड़े जुरासिक पार्क में पहली बार आये थे और एक साथ इतने सारे बड़े-बड़े लोगों को देख घबराहट में “ढैंचू- ढैंचू” चिल्लाने लगे .. ‘भाई’ लोग (कुछ दस्यु सुन्दरियां भी ) अपन को समझाये कि
” ढैंचू- ढैंचू ना चिल्लाओ ,
पढ़ो पढ़ाओ ,लाईफ बनाओ “
फिर एक भाई ने तो धमकी ही दे डाली कि नहीं सुनोगे तो ‘धूमकेतु” बना दिये जाओगे .हम तो पहले बहुत खुश हुए की चलो अब हम भी “धूम-2” , “धूम-3″ की तरह धूम-केतू” बन कर इतिहास में जगह पा जाऎंगे पर जब असलियत समझ में आयी तो सारी ‘अभिलाषाऎं’ बहते पानी की तरह बह गयी और हम होश में आ गये जैसे एक बार हॉस्टल में पूरी तरह टल्ली होने के बाद जब सामने से प्रिंसिपल को आता देखा था तो सारी की सारी ‘ओल्ड मोंक” पुराने सन्यासी (ओल्ड मोंक) की तरह गायब हो गयी थी. होश में आने के बाद जब देखा तो ठाना .. कि अब तो बस हम चिट्ठों को पढ़ेंगे और उनसे अच्छे बच्चों की तरह अच्छी- बातें सीखेंगे …वैसे भी हिन्दी में अच्छी चीजों के ब्लौग उपलब्ध भी हैं.
फिर क्या था हम पढ़ने लगे और गुनने लगे..
अब हमने पढ़ा कि तू मेरी पीठ खुजा मैं तेरी पीठ खुजाऊं ..वो भी एक सुंदरी से.. तो भय्या बात गांठ बांध ली .. कल अपन जब बस स्टेंड पर खड़े होकर मरफी के नियमों से दो चार हो रहे थे तो अचानक पीठ में खुजली सी हुई ..अब पीठ को खुजली खुद तो दूर कर नहीं सकते थे तो पढ़ी हुई बात याद आ गयी और सामने खड़ी सुंदरी की पीठ खुजाने लगे इस आशा में कि वो हमारी पीठ खुजा देगी ..पर ये क्या उसने तो खुजाने की जगह हमारा सर बजा दिया…. ये थी हमारी सैंडल रानी से पहली मुलाकात ..
अब कसम खायी कि बातों को अक्ष:रक्ष ना समझ कर उनमें निहित अर्थ को समझेंगे ..और उसी पोस्ट को फिर से पढ़ा तो पता चला कि आजकल कि नयी पृथा के अनुसार सुन्दरियां “टिप्पणीयों” (कमेंटस) से बहुत खुश होती हैं ..शाम को घर लौटते समय फिर एक बस स्टेंड पर एक सुन्दरी को देखा और उस को खुश करने की ठानी ..और कमेंट्स पर कमेंट्स देने शुरु किये ..वो पहले तो सुनती रही ..हम सोचे कि खुश हो रही है अचानक वो घूमी और उसने भी हमारा सर बजा दिया…
अब तो हम को कुछ भी सूझना बंद हो गया और हमारे सर का सूजना शुरू हो गया…बात पल्ले नहीं पड़ी अब क्या गलती हो गयी हमसे ..आप को समझ आये तो बुझाना..
लो हम भी बातों बातों में कहां आ गये.. अभी ज्यादा फुरसत नहीं है ..कल फिर लिखेंगें .. नहीं तो सैंडल रानी फिर बज गयी तो…
अभी तो आप ये सुनिये…
एक ग्राहक (फोटोग्राफर से)- क्या आप मेरा ‘पासपोर्ट साइज’ का फोटो खींच सकते हैं, जिसमें मेंरा सिर और जूता दोनों नजर आए।
फोटोग्राफर- क्यों नहीं साहब, बस आप अपने जूते सर पर रखकर बैठ जाएँ।
बांकी कल…जरूर आईयेगा..
अप्रैल 5, 2007 at 2:13 पूर्वाह्न
सही है। आप हमारा लेख ध्यान से पढ़ें तो आपको अपनी समस्या का हल मिल जायेगा। असल में दिमाग से जब तक हवा निकल नहीं जाती तब तक मामला फिट नहीं बैठता। और सैंडिले जरा पड़ती भी धीरे-धीरे हैं। इससे पूरी हवा नहीं निकल पा रही होगी। वैसे लेख अच्छा है। सुंदरियां जरूर कृपा करेंगी।
अप्रैल 5, 2007 at 2:38 पूर्वाह्न
भाई काकेश आपकी पूराण भी मजेदार रही
अप्रैल 5, 2007 at 2:42 पूर्वाह्न
हमने सोचा शीघ्रतम शीघ्र आपके लेख की तारीफ कर दें। तारीफ की तारीफ और सुन्दरियों के चोखटे में अलग फिट हो जाएंगें । यानि आम के आम गुठलियों के दाम। वैसे कहा जाता है अगर दो के बीच जूतमबाज़ी चल रही हो तो बीच में कूदना सिर की सलामती के लिए हानिकारक है।
अप्रैल 5, 2007 at 4:20 पूर्वाह्न
सुंदरियों की श्रेणी में हमारा भी नाम डाल दें . अच्छा लेख है. अगले भाग का इंतजार रहेगा. वैसे ये लेख दोनो धुरंधरों के लेख से कमतर नहीं है इसलिये लगे रहिये लाइन में.
अप्रैल 5, 2007 at 4:30 पूर्वाह्न
good humorous post..bahut saree baatain pahle samjh naheee aayee fir jab link padhe to fir hanse bina nahee raha gaya .likhley rahain ..aapkee bhasha kafee achhee lagee.. agalee tippanee hindee me dene kee koshish karunga..
अप्रैल 5, 2007 at 4:46 पूर्वाह्न
भैये, आप सिर्फ लाइन में नहीं हो बल्कि लाइन में बहुत आगे खड़े हो … रोचक लगा आपका लेखन। 🙂
अप्रैल 5, 2007 at 6:40 पूर्वाह्न
सही जा रहे हैं, बीच बीच में यह सेंडिलों की बरसात को प्रसाद ही माना जाये. … 🙂
बढ़िया आलेख रहा आगे इंतजार लगवा दिया है आपने, अब हम भी हैं लाइन में… 🙂
अप्रैल 5, 2007 at 9:13 अपराह्न
बहुते बढिया है भैय्ये।
छा गये।
दस्यु सुंदरी कौन है?