बहस का प्रारम्भ तो हुआ था एक बहुत ही मासूम से सवाल से कि “पत्रकार क्यूं बने ब्लौगर” पर बहस बढ़ती गयी “दर्द बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की” की तर्ज पर .इसी विषय पर बहुत लोगों के विचार आये . मैने भी एक ‘मौजिया’ (बकौल फुरसतिया जी ) चिट्ठा लिख डाला. वो बात तो मजाक की थी लेकिन आज पत्रकारिता का भविष्य क्या है .. आज के नये चिट्ठाकारिता के युग मे यह सवाल अब प्रासंगिक हो चला है. फुरसतिया जी ने अपने लेख में कहा कि पत्रकारों को ब्लौगिंग जम के करनी चाहिये लेकिन यदि हम इस पर गहराई से विचार करें तो प्रश्न उठेगा कि कितने पत्रकार आज ब्लौगिंग से परिचित भी हैं ?
आज जब हमारे पास लगभग हर तरह की जानकारी इंटरनैट के माध्यम से उपलब्ध है जहां जानकारी को प्राप्त करना ज्यादा आसान है तो इस युग में पुराने समाचार माध्यम जैसे समाचार पत्र और पत्रिकाओं का क्या होगा. अभी कुछ दिनों पहले रिपोर्ट आयी कि सैन फ्रेंसिस्को क्रोनिकल बंद होने की कगार पर है और फिर ये समाचार . हाँलाकि ये दोनो उदाहरण हिन्दुस्तान के बाहर के हैं ,जहां इंटरनैट का प्रचार प्रसार भारत से कहीं ज्यादा है लेकिन आज नहीं तो कल ये स्थिति यहाँ भी आ सकती है . ऎसे में हम सब को एक नये माध्यम के लिये तैयार होना होगा. विशेषकर पत्रकारों को .
आइये एक बार समाचार पत्रों के व्यवसाय पर नजर डालें . आपको शायद ध्यान हो पहले समाचार पत्र केवल श्वेत श्याम (black and white) ही होते थे फिर रंगीन समाचार पत्र आये. समाचार पत्रों के रंगीन होने में तकनीकी विकास से अधिक हाथ था विज्ञापन जगत का . विज्ञापनों का सुन्दर दिखना समाचारों के सुन्दर दिखने से ज्यादा आवश्यक था .भारत में मुद्रास्फिति की दर के बढ़ने के बाबजूद समाचार पत्रों की कीमत या तो उस दर से नहीं बढ़ी या फिर कम हुई . और यहां यदि हम अंग्रेजी और हिन्दी के समाचार पत्रों की तुलना करें तो अंग्रेजी की समाचार पत्रों का मूल्य हिन्दी के समाचार पत्रों के मूल्य की तुलना में हमेशा कम रहा है . उस पर भी तुर्रा ये कि अंग्रेजी के समाचार पत्रों में ज्यादा पृष्ठ होते हैं . तो फिर हिन्दी भाषी राष्ट्र के हिन्दी समाचार पत्रों का मूल्य ज्यादा क्यों ? इस सवाल का जबाब सरकार के पास शायद ना हो पर हम सब जानते हैं कि ये संभव होता है विज्ञापन जगत की कृपा से. क़ुछ लोगों को तो ये तक कहते सुना जाता था कि यदि अंग्रेजी समाचार पत्र मुफ्त भी दिये जाँये तो कंपनियों को कोई घाटा न होगा. आज तो ये बात सत्य सी प्रतीत होती है . दिल्ली में सुबह सुबह किसी रैड लाइट पर या रेलवे स्टेशन पर मुफ्त में मिलता “हिन्दुस्तान टाईम्स” इसका परिचायक है . आजकल एक नया समाचार पत्र “ मिन्ट “ चालू हुआ है जो कि मुफ्त में दिया जा रहा है .य़े विज्ञापन बाजार को स्थापित करने का प्रयास है . अब आप इंटरनैट को ही लें यहां भी जब सारे समाचार मुफ्त में उपलब्ध हैं तो फिर भविष्य में कौन खरीदेगा समाचार पत्र ?
जहां तक जानकारियों या सूचनाओं की उपलब्धता का सवाल है यहाँ भी इंटरनैट अन्य माध्यमों की तुलना में ज्यादा सहज है .हाँ यहां जानकारियों की प्रमाणिकता की बात को लेकर कुछ लोग नाक भों सिकोड़ सकते हैं पर ये बात कुछ लोगों के लिये महत्वपूर्ण हो सकती है सबके लिए नहीं. अब आप ब्रिटेनिका इनसाईक्लोपीडिया की तुलना विकीपीडिया से करें तो नि:संदेह ब्रिटेनिका ज्यादा प्रमाणिक है पर कितने लोग आज के युग में ब्रिटेनिका खरीदते हैं ! आज इंटरनैट ने उपभोक्ता की समाचार या जानकारी को खरीदने की जरुरत को समाप्त कर दिया है .
आज समाचार या जानकारी के साथ साथ ये भी महत्वपूर्ण होता जा रहा है कि वो जानकारी हमारे सामने कैसे प्रस्तुत की जा रही है . समाचार की पैकेजिंग समाचार से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गयी है .यही एक चुनौती पत्रकार के सामने भी है .पत्रकार समाज और समाचार के बीच की कड़ी है .पत्रकार का काम सूचना का आदान प्रदान है लेकिन आज जब कुछ लोग ब्लौगर को भी पत्रकार की श्रेणी मं रखने लगे हैं तो व्यवसायिक पत्रकार और शौकिया पत्रकार (ब्लौगर) के बीच की दूरियां कम होने लगी हैं ऎसे में व्यवसायिक पत्रकार के लिये कुछ नयी चुनौतियां हैं . पत्रकारों को अब तकनीकी ज्ञान का होना भी आवश्यक होता जा रहा है . ये आवश्यक नहीं कि वे लोग प्रोग्रामिंग सीखें पर ये जरूरी होता जा रहा है कि वो सही प्रोग्राम को सही जगह चिपका सकें.
इस बहस को सार्थक बनाने के लिये ये आवश्यक है कि हम सब बिना किसी पूर्वाग्रह से इस प्रश्न पर विचार करें और अपना मत दें . तभी हम जान पाएगें बीस साल बाद के रवीश कुमार जी का भविष्य ..
मार्च 27, 2007 at 2:23 पूर्वाह्न
अभी अभी ये पोस्ट पढ़ी जो इस बात को ही आगे बढ़ाती हैं
http://hindini.com/hindini/?p=139
मार्च 27, 2007 at 5:13 पूर्वाह्न
bat patrkaro ki chal rahi hai.to sune is kaum ka bhagvan hi malik hai. agyan aur dambh ne is kaum ko jakar rakha hai.ye apne malik aur bajar ke isharo par nachane wale jeev hai.
aaj ke daur ki chunauti ko samajhane ko ye tayar nahi hai. purane log kuchh karane ki jagah shayapa kar rahe hai.
bhagvan bhala kare apka bahas to shuru ki….
मार्च 27, 2007 at 1:21 अपराह्न
ब्लागिंग विधा केवल पत्रकारों को ही नहीं रचनाकारों, वैज्ञानिकों, खिलाड़ियों और न जाने किन-किन लोगों को अपनी गिरफ़्त में लेगी।
अप्रैल 6, 2007 at 7:00 पूर्वाह्न
[…] जी, प्रमोद जी, अभय जी, अनामदास जी और काकेश जी जैसे कई साथियों ने इस विषय पर बहुत […]
सितम्बर 24, 2007 at 1:03 अपराह्न
[…] जी, प्रमोद जी, अभय जी, अनामदास जी और काकेश जी जैसे कई साथियों ने इस विषय पर बहुत […]
अगस्त 27, 2008 at 1:55 पूर्वाह्न
thikthaak bahas ka mudda hai…